01 Nov 2022
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परमपूज्य सद्गुरु श्री श्री श्री दत्त स्वामीजी
का भक्तों के लिए महत्वपूर्ण संदेश
मैं अपने प्रत्येक भक्त को एक मंत्र देना चाहता हूँ। उस मंत्र को देने से पहले उस मंत्र की भूमिका संक्षेप में समझाना चाहता हूँ।
विषय यह है कि लोग अपना मन आध्यात्मिक मार्ग में नहीं लगा पाते हैं। अर्थात वे भगवान से किसी भी फल की आशा किए बिना, निष्काम भक्ति नहीं कर पाते हैं। लोग सांसारिक समस्याओं से पीड़ित होने के कारण सदैव चिंतित रहते हैं। यही सांसारिक चिंता आध्यात्मिक मार्ग में बाधक बनती हैं। चिंता के कारण वे आध्यात्मिक मार्ग में अपना मन एकाग्र नहीं कर पाते हैं। जब इन सांसारिक समस्याओं के निवारण से उनके मन को शांति मिलेगी, तभी वे भगवान के सच्चे प्रेम में एकाग्र चित्त हो पाएंगे।
अधिकतर लोग अपनी सांसारिक समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए ही भगवान को याद करते हैं। ऐसे लोगों के लिए भगवान तो केवल उनकी कामनाओं की पूर्ति के साधनमात्र होते हैं। अपनी सांसारिक कामनाओं की पूर्ति करना ही उनका लक्ष्य होता है। ऐसी भक्ति साधन-भक्ति कहलाती है। सच्ची भक्ति वह है जिसमें भगवान साधन नहीं बल्कि साध्य (लक्ष्य) हों; भगवान ही भक्ति के एकमात्र लक्ष्य हों। इस सच्ची भक्ति को साध्य-भक्ति कहते हैं। अब प्रश्न यह है कि अगर भगवान ने लोगों की सांसारिक समस्याओं का निवारण किया तो, क्या वे लोग साध्य-भक्ति की ओर अग्रसर होंगे? समस्याओं के निवारण से प्राप्त शांत मन को क्या वे भगवान की सच्ची भक्ति में लगाएंगे? संदेह का कारण यह है कि समस्याएँ तो कभी समाप्त ही नहीं होतीं।
सांसारिक समस्याओं के निवारण से यद्यपि मन को शांति प्राप्त हो भी गई, तो ऐसे शांत मन को वे दुनिया-भर के विषयों को पाने में लगा सकते हैं। पर मैं इस संशय को नज़रअंदाज़ करते हुए यह आशा करता हूँ कि सांसारिक समस्याएँ हट जाने पर लोग अवश्य अपना मन भगवान की भक्ति में केंद्रित करेंगे। इसी विश्वास के साथ मैं यह मंत्र भक्तों को सांसारिक तनाव से छुटकारा पाने के लिए दे रहा हूँ।
मंत्र देने से पहले मैं भगवान के दिव्य शासन की भी थोड़ी भूमिका देता हूँ। भगवान इस सृष्टि का शासन अपने नवग्रह-रूपी अधिकारिओं द्वारा करते हैं। ये नौ ग्रह किसी भी जीवात्मा को अपनी मनमर्ज़ी से कोई फल नहीं देते हैं। वे तो केवल उसी जीवात्मा के भले-बुरे कर्मों के फल देते हैं। ये सारे ग्रह भगवान की केवल कार्यकारी शक्तियां हैं, जो अपने-अपने दायित्वों का निर्वाह करतीं हैं। वे उस जेलर के समान हैं, जो अपराधी को केवल न्यायाधीश के द्वारा सुनाई गई सज़ा के अनुसार ही जेल में कैद करता है। ग्रहों में इतना सामर्थ्य नहीं है कि वे किसी भी सुनाई गई सजा को रद्द कर सकें। यहाँ तक कि यह सामर्थ्य रखने वाले सर्वशक्तिमान भगवान भी अपने ही द्वारा लिखे कर्म-चक्र-रूपी संविधान का उल्लंघन नहीं करते हैं।
पाप कर्म के फलों को रद्द करने का केवल एकमात्र रास्ता है—जीवात्मा का शाश्वत-सुधार। शाश्वत-सुधार के तीन चरण हैं:-
जो भक्त इन तीन चरणों को अपनाकर अपने अंदर शाश्वत-सुधार नहीं लाता है, उसके दुष्कर्म के फल रद्द तो नहीं किये जा सकते हैं। परन्तु कठिनाईओं से त्रस्त भक्त जब भगवान से प्रार्थना करता है, तब भगवान उसके लिए एक अस्थायी व्यवस्था कर देते हैं। वर्तमान के कष्ट को, जो उसी के दुष्कर्मों का फल है, भगवान उसे भक्त के आने वाले जन्मों में धकेल देते हैं। इस व्यवस्था में, उस टाले हुए कर्म-फल में ब्याज जुड़ने के कारण सज़ा में वृद्धि होती है। अतः अगले जन्म में भक्त को अधिक कष्ट भुगतना पड़ता है। भक्त सोचता है कि वह भगवान को मक्खन लगाकर सज़ा से बचने में सफल हो गया। उसे लगता है कि सर्वशक्तिशाली भगवान ने उसकी झूठी प्रार्थनाओं से प्रभावित होकर उसे सज़ा से हमेशा के लिए मुक्त कर दिया है। भगवान भी मौन रहकर भक्त को इस भ्रम में थोड़ी देर खुश होने देते हैं।
नवग्रहों में से सूर्य, चंद्र, बुध, बृहस्पति और शुक्र ग्रह जीवात्मा के अच्छे कर्मों के फल देते हैं; तथा शनि, मंगल, राहु और केतु ग्रह बुरे कर्मों के फल देते हैं। यह नवग्रहों का संक्षिप्त परिचय है। जो मंत्र मैं देने जा रहा हूँ, उस मंत्र के द्वारा आप उन चार ग्रहों को प्रणाम करते हैं, जो आपके पाप-कर्म के फल को कष्ट के रूप में आपको देते हैं। साथ ही साथ, इस मंत्र द्वारा, आप उन ग्रहों को नियंत्रित करने वाले भगवान के दो दिव्य रूपों (अवतारों) को भी याद करते हैं। इनमें से पहला रूप है, प्रभु श्री हनुमान का जो शनिदेव को नियंत्रित करते हैं। उन्हीं की कृपा से शनिदेव को राक्षस रावण की कैद से छुटकारा मिला था। दूसरा रूप है, भगवान सुब्रह्मण्य (कुमार कार्तिकेय) का, जो मंगल, राहु और केतु को नियंत्रित करते हैं। भगवान सुब्रह्मण्य (कुमार कार्तिकेय) और मंगल दोनों ही अग्नि-स्वभाव के हैं और एक-समान माने जाते हैं (कुमारं शक्तिहस्तं तं मङ्गलं प्रणमाम्यहम्)। भगवान सुब्रह्मण्य ने सर्पों के राजा आदिशेष की पुत्री वल्ली से विवाह किया। उन्होंने वल्ली के लिए स्वयं भी सर्प का रूप धारण किया। सर्परूपी होने के कारण भगवान सुब्रह्मण्य राहु और केतु ग्रहों को नियंत्रित करते हैं। राहु और केतु स्वयं सर्परूपी राक्षस के दो भाग हैं। प्रभु श्री हनुमान और भगवान सुब्रह्मण्य को नमन करने से शनि, मंगल, राहु और केतु, ये चार ग्रह संतुष्ट होते हैं। जिन लोगों को शिव भक्ति से आपत्ति है, और वे शिव-पुत्र कुमार सुब्रह्मण्य का जाप नहीं करना चाहते हैं, वे भगवान सुब्रह्मण्य के स्थान पर श्री आदिशेष का जाप कर सकते हैं।
पूजन के लिए, आप प्रभु श्री हनुमान (आंजनेय) और भगवान सुब्रह्मण्य के चित्र को सामने रखकर निम्नलिखित मंत्र का जाप कर सकते हैं। आप चाहें तो स्वामी सुब्रह्मण्य के स्थान पर श्री आदिशेष का चित्र रखकर भी जाप कर सकते हैं।
श्री शनैश्चर-कुज-राहु-केतुभ्यो नमः। श्री आञ्जनेय श्री सुब्रह्मण्य।
अगर आप चाहें तो मंत्र में ‘श्री सुब्रह्मण्य’ के स्थान पर ‘श्री आदिशेष’ के नाम का जाप कर सकते हैं।
केवल “श्री आञ्जनेय श्री सुब्रह्मण्य” अथवा “श्री आञ्जनेय श्री आदिशेष”, का जाप करना भी पर्याप्त है। कोई समस्या न होने पर भी आप इस मंत्र का जाप कर सकते हैं। पहले से किए हुए इस जाप से आने वाली समस्याओं से आपकी रक्षा होगी। अतः जितना संभव हो सके अघिक से अधिक इस मंत्र का जाप करें।
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